सारांश
महाभारत के आदिपर्व में वर्णित सर्प-सत्र एक ऐसा प्रसंग है जो प्रतिशोध, धर्म और करुणा के मध्य संघर्ष का प्रतीक है।राजा जनमेजय द्वारा सम्पूर्ण नाग
वंश के विनाश हेतु किया गया यह यज्ञ केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि मानवीय सीमाओं की परीक्षा भी है। यह शोध-पत्र इस प्रसंग को मुग़लकालीन दृश्य-परंपरा में प्रस्तुत दो लघुचित्रों के माध्यम से समझने का प्रयास करता है। दोनों चित्र, जो सम्भवत: अकबरकालीन रज्म्नमा पाण्डुलिपि से संबंधित हैं, वैदिक आख्यान और फ़ारसी सौंदर्यबोध के सम्मिलन को दर्शाते हैं। शोध का उद्देश्य इन चित्रों में छिपे धार्मिक, नैतिक और कलात्मक अर्थों को मानव-केंद्रित दृष्टि से पुनर्परिभाषित करना है।
इस अध्ययन में दृश्य-संरचना, रंग-संयोजन, प्रतीकवाद और मानवीय भावनाओं की अभिव्यक्ति का विश्लेषण किया गया है। परिणामतः यह स्पष्ट होता है कि ये चित्र न केवल पौराणिक कथा का रूपांतरण हैं, बल्कि "धर्म बनाम दया" की बहस का दृश्य-प्रलेख भी हैं।
मुख्य शब्द: महाभारत, सर्प-सत्र, जनमेजय, आस्तिक, मुग़ल चित्रकला, रज्म्नमा, धर्म, करुणा, यज्ञ, प्रतीकवाद
References
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